Sunday, April 17, 2011

आंकड़े और गरीब

आंकड़े और ग़रीब 

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वे समझ नहीं पाते
कि वे आंकड़े है या गरीब,
जब देखो
छपती रहती है रिपोर्टें  
अख़बारों में,
होतें रहते है बड़े-बड़े सेमिनार 
कि करना है इन आंकड़ो को कम
आखिर,
यह आंकड़ा मापता क्या है 
उनकी गरीबी,
कि मौसम का तापमान
जो कभी कम होता
तो कभी बढ़ता,
ली जाती है शपथ 
हर साल पंद्रह अगस्त को
कि अब कोई नहीं रहेगा गरीब 
इस देश में,
आखिर वे कब तक रहेंगे बंधक 
अपने देश ही में,
आखिर कब मिटेगी 
सभी बुराइयों की जड़
जिसने फैला रखा है पैर
चारों तरफ 
करना होगा ख़त्म 
आंकड़ो की बाजीगरी,
देना होगा 
हर हाथों को काम,
जिससे वे कह सकें
कि अब हम आजाद है 
पूरी तरह
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सादर प्रणाम
मीरापोर 

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